दोस्तों आज हम World Geography Notes in Hindi की इस श्रंखला में कुछ प्रमुख महासागर कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य, महासागरीय धाराएँ के बारें में आप सभी छात्रों को विस्तार में जानकारी देेंगें जो कि सिविल सर्विसेज की तैयारी करनें वाले छात्रों केसाथ सभी एक दिवसीय परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रो के लिए काफी उपयोगी होगा।
World Geography Notes in Hindi
कुछ प्रमुख महासागर
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, कुल जलाशयों के विस्तार का लगभग 93 प्रतिशत भाग प्रशान्त, अटलाटिक, हिन्द और आर्कटिक महासागर के पास है । अतः हम इन्हीं के बारे में थोड़ा-सा परिचय प्राप्त करेंगे –
1. प्रशान्त महासागर –
यह विश्व का सबसे बड़ा महासागर है, जो पृथ्वी का लगभग 1/3 भाग घेरे हुए है । यह सबसे बड़ा ही नहीं बल्कि सबसे गहरा महासागर भी है । चूंकि यह बहुत ही अधिक गहरा है, इसलिए कुछ अधिक ही शांत है । शायद इसीलिए इसका नाम प्रशांत रखा गया है ।
इसकी मरिआना खाई समुद्र तल से लगभग 11000 मीटर है । जबकि इस महासागर की औसत गहराई 4572 मीटर गहरी ही है । इस महासागर में लगभग 20000 द्वीप (आयलैंड) हैं । इनमें से अधिकांश आयलैंड या तो ज्वालामुखियों से उत्पन्न हुए हैं या फिर प्रवाल से बने हैं।
इस महासागर की एक विशेषता यह है कि इसमें मध्य महासागरीय कटक नहीं हैं । हाँ, स्थानीय महत्त्व के कुछ कटक जरुर हैं, जो बिखरे हुए हैं । इस महासागर के कुछ प्रमुख द्वीप – समूह हैं – जापान, फिलीपीन्स, इण्डोनेशिया एवं न्यूजीलैण्ड आदि ।
इसके कुछ तटीय समुद्र हैं – बियरिंग सागर, जापान सागर, चीन सागर तथा पीत सागर आदि
अटलांटिक महासागर –
यह प्रशान्त महासागर का आधा एवं पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का 1/6 भाग है । इसकी आकृति रोमन के अक्षर से मिलती-जुलती है । यह महासागर इस मायने में बहुत महत्त्वपूर्ण है कि यह पश्चिम में उत्तरी एवं दक्षिण महाद्वीप से घिरा हुआ है तथा पूर्व में यूरोप और अफ्रीका से । दक्षिण में इसकी सीमा अंटार्कटिक महाद्वीप तक है और उत्तर में आइसलैंड तक ।
अटलांटिक महासागर में स्थित कुछ प्रमुख द्वीप-समूह हैं – ब्रिटेन, सेंट सेलन, न्यू फाउंडलैण्ड तथा त्रिनिडाड आदि ।
हिन्द महासागर –
यह पहले के दो महासागरों से छोटा है । यह एशिया तथा अफ्रीका के बीच में फैला हुआ है । और जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह भारत की सीमा को स्पर्श करता है । यह दुनिया का एकमात्र ऐसा महासागर है, जिसका नाम किसी देश पर है और सौभाग्य से यह देश है – हिन्दुस्तान ।
- इस महासागर की औसत गहराई 4000 मीटर है । इसमें बहुत कम महासागरीय खाइयाँ हैं ।
- इसके प्रमुख द्वीप-समूह हैं – मेडागास्कर, श्रीलंका, जंजीबार तथा अंडमान-निकोबार ।
- प्रशान्त एवं अटलांटिक महासागरों की तुलना में हिन्द महासागर में सीमान्त सागरों की संख्या कम ही है ।
- इसके प्रमुख सीमान्त सागर है अरब सागर, लाल सागर, बंगाल की खाड़ी तथा अंडमान सागर ।
उत्तरध्रुवीय महासागर –
यह उत्तरी ध्रुव पर स्थित महासागर है, जो बर्फ से ढँका रहता है । कैनेडियन एवं न्यू साइबेरियन द्वीप समूह इसके प्रमुख द्वीप हैं ।
कुछ प्रमुख तथ्य –
- तीन ओर स्थल तथा एक ओर समुद्र से घीरे भाग को खाड़ी कहते हैं; जैसे बंगाल की खाड़ी ।
- दो सागरों को मिलाने वाली पतली जलधारा को मध्य जलडमरु कहा जाता है ।
- धु्रवीय महासागरों का अधिकांश भाग बर्फ से ढंका रहता है ।
महासागरीय धाराएँ
जब महासागरों के जल की बहुत बड़ी मात्रा एक निश्चित दिशा में लम्बी दूरी तक सामान्य गति से चलने लगती है, तो उसे महासागरीय धाराएँ कहते हैं । यह महासागरों जैसी चैड़ाई वाली होकर स्थानीय धाराओं जैसी छोटी भी हो सकती है ।
समुद्री धाराओं को जन्म देने में दो कारक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं –
- पहला तो यह कि समुद्र के धरातल पर हवाओं का घर्षण किस प्रकार हो रहा है । निश्चित रूप से जिस दिशा में हवाएँ बहती हैं, वे पानी को भी उसी दिशा में बहाकर ले जाती हैं ।
- दूसरा यह कि जल के घनत्त्व में अन्तर से जो असमान शक्ति उत्पन्न होती है, उससे भी जल की धारा प्रवाहित होती है । इसे थर्मोक्लाइन धाराएँ कहते हैं । इसका वैज्ञानिक सिद्धान्त यह है कि जो जल जितना अधिक गर्म होगा, उसका घनत्त्व उतना ही कम होगा । अर्थात् वह धारा हल्की हो जायेगी । ठीक इसके विपरीत जो जल जितना अधिक ठण्डा होगा, उसका घनत्त्व उतना ही अधिक होगा । इस प्रकार ठण्डी जल धारा भारी होती है, और गर्म जलधारा हल्की । ऐसी स्थिति में जिस प्रकार ठण्डी वायु गर्म प्रदेशों की ओर प्रवाहित होती हैं, ठीक उसी प्रकार ठण्डी जलधाराएँ गर्म क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने लगती हैं । इसे इस रूप में भी कहा जा सकता है कि जल मंद गति से अधिक घनत्त्व वाले क्षेत्र से कम घनत्त्व वाले क्षेत्र की ओर प्रवाहित होने लगता है ।
- कोरिओजिस बल के प्रभाव के कारण बहता हुआ जल मुड़कर दीर्घ वृत्ताकार रुप में बहने लगता है, जिसे गायर (वृत्ताकार गति) कहते हैं । इस वृत्ताकार गति में जल उत्तरी गोलार्ध में घड़ी की सूई के अनुकुल तथा दक्षिण गोलार्ध में घड़ी की सुई के प्रतिकुल बहता है ।
- इसके अतिरिक्त भी समुद्री धरातल पर कभी जल नीचे की ओर जाता है, जिसे जल का ‘अप्रवाह’ कहते हैं । तो कहीं जल नीचे से ऊपर की ओर आता है, जिसे ‘उत्प्रवाह’ कहा जाता है। जल के इस प्रकार ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आने के कारण होते हैं – हवाओं की प्रक्रिया, सतह के जल का वाष्पीकरण होना, वर्षा द्वारा सतह के जल में वृद्धि करना तथा वाष्पीकरण एवं संघनन से जल के घनत्त्व में परिवर्तन होना ।
- महासागरीय जल काफी मात्रा में ऊपर से नीचे की ओर बहता है । इसका महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि उच्च अक्षांशों में ठण्ड अधिक होने के कारण सतह का पानी बहुत ठण्डा हो जाता है । इससे जल की ऊष्मा कम हो जाती है । इसके कारण महासागरों की धाराएँ धु्रवों की ओर बहने लगती हैं । ध्रुवों की ओर आने वाली गर्म धारा यहाँ आकर ठण्डी हो जाती हैं । ठण्डी होने के कारण इस धारा का घनत्त्व बढ़ जाता है । इसलिए यह जल समुद्री सतह के नीचे जाने लगता है ।
धाराओं के प्रकार –
- सामान्यतया दो प्रकार की महासागरीय धाराएँ हैं – गर्म जल धाराएँ और ठण्डी जल धाराएँ ।
- गर्म जल धाराएँ वे धाराएँ हैं, जो निम्न ऊष्ण कटिबंधीय अक्षांशों से उच्च शीतोष्ण एवं उप धु्रवीय अक्षांशों की ओर बहती हैं ।
- ठण्डी जल धाराएँ वे हैं, जो उच्च अक्षांशों से नीचे की ओर बहती हैं ।
धाराओं की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं –
- धाराएँ एक विशाल नदी की तरह समुद्रों में बहती हैं । लेकिन इनके प्रवाह की गति और चैड़ाई एक जैसी नहीं होती ।
- जल धाराएँ भी कॉरिओलिस बल के प्रभाव के कारण हवाओं की तरह ही भूगोल के नियम का पालन करती हैं ।
- लेकिन हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में धाराओं की दिशा कारिआलिस बल से निर्धारित न होकर मौसमी हवाओं से निर्धारित होती हैं । यह जल धाराओं के नियम का एक अपवाद है ।
- गर्म धाराएँ ठण्डे सागर की ओर तथा ठण्डी धाराएँ गर्म सागर की ओर प्रवाहित होती हैं ।
- निम्न अक्षांशों में पश्चिमी तटों पर ठण्डी जल धाराएँ तथा पूर्वी तटों पर गर्म जल धाराएँ बहती हैं ।
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धाराओं का प्रभाव –
स्थानीय मौसम एवं उद्योग पर इनका काफी प्रभाव पड़ता है । इनके मुख्य प्रभाव निम्नलिखित होते हैं:-
- महासागरीय धाराएँ समुद्री तटों के तापक्रम को प्रभावित करती हैं । जैसे गर्म पानी की धारा अपनी ऊष्मा के कारण ठण्डे समुद्री तटों के बर्फ को पिघलाकर उसमें जहाजों के आवागमन को सुगम बना देती हैं । साथ ही पानी के पिघलने के कारण वहाँ मछली पकड़ने की सुविधा मिल जाती है ।
- बड़ी महासागरीय धाराएँ पृथ्वी की उष्मा को संतुलित बनाने में योगदान देती हैं ।
- महासागरीय धाराएँ अपने साथ प्लेंकटन नामक घास भी लाती हैं, जो मछलियों के लिए उपयोगी होती हैं । पेरु तट पर अलनीनो प्रभाव के कारण प्लेंकटन नष्ट हो जाते हैं, जबकि गल्फस्ट्रीम की प्लेंक्टन, न्यू फाऊलैण्ड पर पहुँचकर वहाँ महाद्वीपीय उद्योग के लिए अनुकूल परिस्थियाँ बना देते हैं ।
- गर्म और ठण्डी धाराओं के मिलन स्थल पर कुहरा छा जाता है, जिससे जहाजों को बहुत नुकसान उठाना पउ़ता है । न्यूफाऊलैण्ड में हमेशा कुहरा छाये रहने के कारण वहाँ गल्फस्ट्रीम नामक गर्म जल धारा तथा लेप्रोडोर नामक ठण्डी जल धारा का मिलना ही है ।
- ठण्डी धाराएँ अपने साथ बर्फ के बड़े-बड़े खण्ड भी लाती है,ं जिनसे जहाजों के टकराने का खतरा रहता है ।
कुछ प्रमुख महासागरों की धाराएँ –
(1) प्रशान्त महासागर की धाराएँ –
प्रशान्त महासागर विश्व का सबसे गहरा और बड़ा महासागर है । इसलिए स्वाभाविक है कि यहाँ धाराओं की संख्या भी सबसे अधिक होगी। इस महासागर में बहने वाली प्रमुख धाराएँ हैं –
अ) क्यूरोसिओ धारा – यह धारा ताइवान तथा जापान के तट के साथ बहती है । बाद में उत्तरी अमेरीका के पश्चिमी तट पर पहुँचने के बाद यह आलाक्सा धारा तथा कैलिफोर्निया धारा के रूप में बँट जाती है । किरोसिओ धारा गर्म पानी की धारा है ।
ब) यावोसिओ नाम की ठण्डी धारा प्रशान्त महासागर के उत्तर में बहती है ।
स) इसी महासागर में पेरु नामक ठण्डे पानी की धारा भी प्रवाहित होती है ।
(2) अटलांटिक महासागर की धाराएँ –
प्रशान्त महासागर की तरह ही यहाँ भी उत्तर और दक्षिण गोलार्द्ध में पूर्व से पश्चिम की ओर भूमध्य रेखीय धाराएँ तथा पश्चिम से पूर्व की ओर विरूद्ध भूमध्य रेखीय धाराएँ बहती हैं ।
अ) विरूद्ध भूमध्य रेखीय धारा को पश्चिम अफ्रीका के तट पर गिनी धारा कहते हैं ।
ब) फ्लोरिडा धारा – संयुक्त राज्य अमेरीका के दक्षिण-पूर्वी तट पर फ्लोरिडा अंतरीप से हटेरस अंतरीप की ओर बहने वाली धारा फ्लोरिडा धारा कहलाती है ।
स) गल्फ स्ट्रीम – फ्लोरिडा धारा ही जब हटेरास द्वीप से आगे बहती है, तो न्यू फाउलैण्ड के पास स्थित ग्रैन्ट बैंक तक इसे ही गल्फ स्ट्रीम कहते हैं । यह गर्म पानी की धारा है ।
द) उत्तरी अटलांटिक धारा – यही गल्फ स्ट्रीम ग्रेन्ट बैंक से आगे पछुआ हवाओं के प्रभाव में आकर पूर्व की ओर मुड़ जाती है । यहाँ से यह अटलांटिक के आरपार उत्तरी
अटलांटिक धारा के नाम से जानी जाती है ।
अटलांटिक महासागर में बहने वाली अन्य प्रमुख धाराओं के नाम हैं – लेब्रोडोर धारा, ग्रीनलैंड धारा, ब्राज़ील धारा, बैंग्वेला धारा तथा फॉकलैंड धारा । इनमें से ग्रीनलैंड तथा लेब्रोडोर धारा चूँकि आर्कटिका महासागर से चलती है, इसलिए ठण्डी होती हैं । ये दोनों धाराएँ न्यू फाउंलैंड के पास गल्फ स्टीम नाम की गर्म जल धारा से मिल जाती हैं । इसके
कारण यहाँ बारहों महीने कुहरा छाया रहता है । इसी कारण यह क्षेत्र मछली पकड़ने के लिए संसार का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है ।
बेंग्वेला तथा फाकलैंड, ये दोनों ही धाराएँ ठण्डे पानी की धाराएँ हैं ।
(3) हिन्द महासागर की धाराएँ –
हिन्द महासागर की धाराओं की प्रवृत्ति प्रशान्त एवं अटलांकि महासागरों से अलग है । इसके दो कारण हैं – (1) पहला, हिन्द महासागर के उत्तर में स्थल भूमि का अधिक होना, जिसके कारण धाराओं की प्रवृत्ति बदल जाती है तथा (2) दूसरा, मानसूनी हवा का प्रभाव, जिससे धाराओं की दिशा परिवर्तित हो जाती है । इसी कारण हिन्द महासागर के उत्तरी क्षेत्र में ग्रीष्म एवं शीत ऋतु में धाराओं की दिशा भिन्न-भिन्न होती है ।
हिन्द महासागर में बहने वाली मुख्य धाराएँ हैं – मोजाम्बिक धारा (गर्म धारा, अगुलहास धारा (ठण्डी धारा), पूवी आस्ट्रलियाई धारा (गर्म धारा) तथा दक्षिण विषुवत रेखीय धारा (गर्म धारा)।
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