भारतीय राजव्यवस्था की आज की शृंखला में अब प्रस्तुत हैं प्रतियोगी छात्रों के लिए भारतीय राजव्यवस्था का आज का भाग – भारतीय संविधान में संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था के लक्षण और अनुच्छेद 356 – राष्ट्रपति शासन से सम्बंधित है , को शेयर कर रहा है । इस शृंखला की सबसे खास बात यह है की Indian Polity Notes (भारतीय राजव्यवस्था) in Hindi विषेशज्ञों के द्वारा तैयार किया गया है,जो नवीनतम Pattern पर आधारित है।
जो छात्र SSC Graduate Level Exams— Combined Graduate,Level Prel. Exam, CPO Sub-Inspector, Section Officer(Audit), Tax Assiatant (Income Tax & Central Excise), Section,Officer (Commercial Audit), Statistical Investigators,Combined Graduate Level Tier-I & II, SAS, CISF ASI, CPO ASI & Intelligence officer, FCI, Delhi Police SI etc. Exams.,SSC 10+2 Level Exams— Data Entry Operator & LDC,Stenographer Grade ‘C’ & ‘D’ etc.,SSC Combined Matric level Exams — Combined,Matric Level Pre-Exam, Multitasking (Non-Technical) Staff,CISF Constable (GD), Constable (GD) & Riflemen (GD),and Other Competitive Exams. की तैयारी कर रहे है उनके लिए यह Indian Polity Notes (भारतीय राजव्यवस्था) in Hindi का ये भाग वैसे बेहद ही आसान है यदि एक बार इसे ठीक से समझ लिया जाये।
भारतीय संविधान में संघात्मक और एकात्मक व्यवस्था के लक्षण
भारत एक संवैधानिक गणराज्य है । भारत के संविधान की’ प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है । भारत में संघीय शासन व्यवस्था लागू है किन्तु संविधान में कहीं भी फेडरेशन (संघात्मक) शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है । संविधान में भारत को ‘राज्यों का संघ’ कहा गया है ।
कें. सी. हेयर के अनुसार- ” भारत मुख्यत: एकात्मक राज्य है, जिसमें संघीय विशेषताएं नाममात्र की है । भारत का संविधान संघीय कम एकात्मक अधिक है । ”
प्रो. पायली के अनुसार- ” भारत का ढाँचा संघात्मक है किन्तु. उसकी आत्मा एकात्मक है । ”
प्रो. डी. डी. बसु के अनुसार- ” भारत का संविधान न तो शुद्ध रूप से परिसंघीय है और न शुद्ध रूप से ऐकिक है; यह दोनों का संयोजन है । ”
भारतीय संविधान में संघात्मक व्यवस्था के लक्षण
संविधान की सर्वोच्चता ।
केन्द्र राज्य में पृथक-पृथक सरकारें ।
केन्द्र व राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन ।
स्वतंत्र व सर्वोच्च न्यायालय ।
भारतीय संविधान में एकात्मक व्यवस्था के लक्षण
एकीकृत न्याय व्यवस्था ।
इकहरी नागरिकता ।
शक्तियों का बंटवारा केन्द्र के पक्ष में ।
संघ तथा राज्य के लिए एक ही संविधान।
केन्द्र सरकार को राज्यों की सीमा परिवर्तन करने का अधिकार ।
राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति ।
राज्य सूची के विषय पर केन्द्र को कानून बनाने का अधिकार ।
संविधान संशोधन सरलता से ।
संकटकाल में एकात्मक स्वरूप ।
राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित कानूनों को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित रखने का राज्यपालों को अधिकार ।
अनुच्छेद 356 – राष्ट्रपति शासन
अनुच्छेद 356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो।
यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति (जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो) की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है (ताकि वो नागरिक अशांति के कारणों का निवारण कर सके)। राष्ट्रपति शासन के आलोचकों का तर्क है कि अधिकतर समय, इसे राज्य में राजनैतिक विरोधियों की सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे कुछ लोगों के द्वारा इसे संघीय राज्य व्यवस्था के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है। 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया है।
अनुच्छेद को पहली बार 31 जुलाई 1959 को विमोचन समारम के दौरान लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी केरल की कम्युनिस्ट सरकार बर्खास्त करने के लिए किया गया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की भाजपा की राज्य सरकार को भी बर्खास्त किया गया था।
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