ब्रिटिश शासन में सांविधानिक विकास-Indian Polity Notes In Hindi PDF Download
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Sarkari Naukri Help की शृंखला में अब प्रस्तुत हैं प्रतियोगी छात्रों के लिए भारतीय राजव्यवस्था से सम्बंधित Topics wise, Indian Polity Notes in Hindi शेयर कर रहा है । इस शृंखला की सबसे खास बात यह है की Indian Polity Notes (भारतीय राजव्यवस्था) विषेशज्ञों के द्वारा तैयार किया गया है,जो नवीनतम Pattern पर आधारित है। इसमे गत् वर्षों मे आयोजित परीक्षाओ से अब तक के प्रश्न जिनका हल बहुत ही सरल तरीके से व्याख्या के साथ पढने को मिलेगा जो कि आपको आगामी प्रतियोगी परीक्षा काफी साहायक साबित होगी।
जो छात्र SSC Graduate Level Exams— Combined Graduate,Level Prel. Exam, CPO Sub-Inspector, Section Officer(Audit), Tax Assiatant (Income Tax & Central Excise), Section,Officer (Commercial Audit), Statistical Investigators,Combined Graduate Level Tier-I & II, SAS, CISF ASI, CPO ASI & Intelligence officer, FCI, Delhi Police SI etc. Exams.,SSC 10+2 Level Exams— Data Entry Operator & LDC,Stenographer Grade ‘C’ & ‘D’ etc.,SSC Combined Matric level Exams — Combined,Matric Level Pre-Exam, Multitasking (Non-Technical) Staff,CISF Constable (GD), Constable (GD) & Riflemen (GD),and Other Competitive Exams. की तैयारी कर रहे है उनके लिए यह सामान्य अध्ययन का ये भाग वैसे बेहद ही आसान है यदि एक बार इसे ठीक से समझ लिया जाये।
ब्रिटिश शासन में सांविधानिक विकास
भारत में संविधान का विकास 1857 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन और उसके पश्चात ब्रिटिश क्राउन के अधीन हुआ
ईस्ट इंडिया कम्पनी का संचालन दो समितियों द्वारा किया जाता था, “स्वामी मण्डल और संचालक मण्डल”
स्वामी मण्डल(Court of Proprietors)-कम्पनी के सभी साझीदार इसके सदस्य होते थे, जिन्हें सभी नियम कानून और अध्यादेश बनाने का अधिकार था, और इन्हें ये भी अधिकार था कि यदि कोई नियम संचालक मण्डल बना रहा है तो ये उसे रद्द भी कर सकते थे
संचालक मण्डल(Court of Directors)- संचालक मण्डल में 24 सदस्य होते थे जो स्वामी मण्डल से ही होते थे और स्वामी मण्डल द्वारा ही चुने भी जाते थे, संचालक मण्डल का कार्य स्वामी मण्डल द्वारा बनाये गये नियमों का पालन करवाना था
भारतीय संविधान का ढांचा विकसित होने में मूल रूप से 1857 ई0 के बाद ब्रिटिश क्राउन द्वारा किये गये संवैधानिक परिवर्तन महत्वपूर्ण हैं
रेग्युलेटिंग एक्ट (Regulation Act)1773 –
मद्रास और बम्बई प्रेसिडेंसियों को बंगाल प्रेसिडेंसी के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया
कलकत्ता के फोर्ट विलियम में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गयी जिसका अधिकार क्षेत्र बंगाल, बिहार तथा उडीसा तक था
इस नियम का मूल उद्देश्य कम्पनी की गतिविधियों को ब्रिटिश क्राउन की निगरानी में लाना था
पिट्स इंडिया एक्ट (Pits India Act)1784
एक नियंत्रण मंडल (Board of Control)की स्थापना की गयी
संचालक मंडल, नियंत्रण मंडल की सभी आज्ञाएं मानने के लिये बाध्य था
और स्वामी मण्डल के संचालक मण्डल के फैसले उलटने के अधिकार को खत्म कर दिया गया
चार्टर अधिनियम(Charter Act)1793
नियंत्रण मण्डल के सदस्यों और स्टाफ को भारतीय राजस्व से वेतन देना प्रारम्भ किया गया, जो 1919 तक जारी रहा
चार्टर अधिनियम(Charter Act)1813
इस चार्टर से कम्पनी के अधिकार पत्र को 20 वर्ष के लिये बढा दिया गया
कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार(Monopoly) को समाप्त कर दिया गया
हालांकि चाय, चीनी और सिल्क के व्यापार पर कम्पनी का एकाधिकार बना रहा
चार्टर अधिनियम(Charter Act)1833
अब ईस्ट इंडिया कम्पनी के सभी व्यापारिक अधिकार समाप्त कर दिये गये और अब वह भारत में सिर्फ प्रशासन के प्रति उत्तरदायी रह गयी थी
अब यूरोपीय लोग भारत में सम्पत्ति अर्जित कर सकते थे, क्योंकि उस पर लगी रोक हटा ली गयी थी
बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया
भारतीय विधि आयोग की स्थापना की गयी
विधि आयोग ने कई रिपोर्ट पेश की जिनमें से मैकाले का पेनल कोड बहुत प्रसिद्ध है
मद्रास तथा बम्बई में गवर्नरों की कानून बनाने की शक्ति को घटा दिया गया और उनके द्वारा किसी कानून को रद्द करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी की जाने वाली याचिकायें-
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ये 5 प्रकार की याचिकायें जारी की जाती हैं
बंदी प्रत्यक्षीकरण यह किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बंदी बनाये जाने पर उसे स्वतंत्रता प्रदान करने के लिये जारी किया जाता है, इस लेख के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय बंदीकरण करने वाले, व्यक्ति को यह आदेश देता हैकि वह बंदी किये गये व्यक्ति को सशरीर नियत स्थान तथा नियत समय पर उपस्थित करे इस आदेश का तुरंत पालन किया जाता है तथा गैर कानूनी ढंग से बंदी बनाये गये व्यक्ति को तुरंत रिहा किया जाता है
परमादेश इस रिट के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय किसी ऐसे पदाधिकारी अथवा सार्वजनिक संस्थान को यह आदेश देता है कि वह सार्वजनिक उत्तरदायित्व का निर्वहन ठीक प्रकार से करे
प्रतिषेध लेख यानि प्रोहिबिशन यह आज्ञा पत्र सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालयों को दिया जाता है इसके अंतर्गत उन न्यायालयों को यह आदेश दिया जाता है कि वह किसी मामले में अपनी कार्यवाही रोक दें क्योंकि यह मामला उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है
उत्प्रेषण यह आज्ञापत्र किसी विवाद को निम्न न्यायालय से उच्च न्यायालय में भेजने के लिये जारी किया जाता है
अधिकार पृच्छा जब कोई व्यक्ति किसी पद पर कार्य करने के लिये अधिकृत नहीं होता लेकिन फिर भी वह उस पद पर कार्य करने लगता है तो न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध यह आज्ञापत्र जारी करता है और उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस आधार पर इस पद पर कार्य कर रहा है